टक्कर
हम भी एक महल बनाए है
उलफत के सरज़मीं पे
महफूज रहे मेरा महल
इसीलिए वफा की चादर
ओढा़या है हमने महल पे ।
देखें ज़ुल्म में कितनी ताक़त है
जो महल को हीला दे
चाहत की जंजीर से
इसे बांधा है हमने ।
आजमाइश होगी एक न एक दिन
किसकी होगी जीत
यह फैसला हो जाएगा
इन्तजार है हमें उस घड़ी की
जिस दिन कयामत
मेरे कायनात से टकराएगी।
अति सुंदर भाव, सुन्दर रचना
धन्यवाद महोदय।
बहुत खूब
शुक्रिया।
सुन्दर रचना
धन्यवाद।
बहुत खूब