टूटता जा रहा हूँ मै
टूटता जा रहा हूँ मै .
छूटती हुई राहें-बढ़ता हुआ अँधेरा,
भटकता जा रहा हूँ मै .
टूटता हुआ किनारा-उमड़ता हुआ सागर ,
डूबता जा रहा हूँ मै .
समाज का बंद कमरा-कमरे में मै अकेला,
घुटता जा रहा हूँ मै .
जिंदगी कि बेवफाई-निराशा कि गहराई,
टूटता जा रहा हूँ मै .
टूटता जा रहा हूँ मै .
-अनिल कुमार भ्रमर –
shaandaar
धन्यवादजी
Waah
शुक्रिया
बेहतरीन पंक्तिया
धन्यवाद रमेशजी
Good
Awesome