ठंड में ठिठुरता जीवन

सड़क किनारे बैठ कर,
वो कपड़े सिया करता है
सर्द हवा का झोंका,
उसको भी दर्द दिया करता है
कभी जलाकर आग,
बदन ताप लिया करता है
ये सर्दी का मौसम,
उसको भी संताप दिया करता है
एक पुरानी सी शॉल को,
बदन पर लपेट लिया करता है,
इस कड़कती सर्दी में भी
ज़िन्दगी जिया करता है
बिन स्वेटर के भी,
फुर्ती से काम किया करता है,
ये कोहरा, ये ठंडा मौसम
उसको भी परेशान किया करता है..

*****✍️गीता

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. वाह दी!
    सुंदर भाव वा शिल्प से सजी आपकी कविता एक चीख सी मन में पैदा करती है…
    उत्तम

  2. जीवनानुभूतियों को करीब से आत्मसात कर कविता का रूप लेती सुन्दर संवेदना है यह। कवि गीता जी ने ठंड में ठिठुरती असहाय मानवता का सटीक चित्र प्रस्तुत किया है। कथ्य व शिल्प की दृष्टि से उच्चस्तरीय रचना है यह।

+

New Report

Close