ठंड में मैं आग पीना चाहता हूँ
मैं कभी तो खूब रोना चाहता हूँ,
ठंड में मैं आग पीना चाहता हूँ,
रात भर अकड़ा हुआ बेजान मत समझो,
अभी तो और जीना चाहता हूँ।
पैदा हुआ कैसे कहाँ कब क्या
न जाने,
बस इसी फुटपाथ को पहचानता हूँ।
माँ-बाप क्या परिवार क्या है क्या पता,
मैं अकेली रात को ही जानता हूँ।
कौन कब मुझको यहां पर रख गया,
कौन हूँ खुद भी नहीं पहचानता हूँ।
मैं कभी तो खूब रोना चाहता हूँ,
ठंड में मैं आग पीना चाहता हूँ,
बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ
बहुत खूब
अनाथों की ज़िन्दगी का यथार्थ चित्रण
बहुत खूब बहुत बढ़िया
अनाथ बच्चे की तन्हा ज़िन्दगी का और ज़िन्दगी से जूझने का वास्तविक चित्रण । बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति
लाजबाब सर
बेहतरीन
वाह सर
बेसहारा अनाथ बच्चे की कहानी बयां करती मार्मिक रचना