ठहरो-ठहरो इनको रोको, ये तो बहसी-दरिन्दें हैं ।
ठहरो-ठहरो इनको रोको, ये तो बहसी-दरिन्दें हैं ।
अगर इसे अभी छोड़ डालोगे. तो आगे इसका परिणाम बुरा भुगतोगे ।।
ठहरो-ठहरो इनको रोको, ये तो बहसी-दरिन्दें हैं ।
बहसी-दरिन्दें को बख्सना देश हित में ठीक नहीं,
ये तो सजा के हकदारी है. इन्हें देश हित में सजा देना ठीक हैं ।।
ठहरो-ठहरो इनको रोको, ये तो बहसी-दरिन्दें हैं ।
लूट लेते हैं ये किसी के बहु-बेटियों के आबरू को और
उन्हें जिन्दा दफना देते है, ये है इसकी दरिन्दगी का नजारा रे!
ठहरो-ठहरो इनको रोको, ये तो बहसी-दरिन्दें हैं ।
नजारा तो और भी देखने को मिलते है, सत्य के दरबार में,
वहाँ दुष्कर्म ग्रसित युवती से पूछा जाता है, दिखाओ अपना सबूत रे!
ठहरो-ठहरो इनको रोको, ये तो बहसी-दरिन्दें हैं ।
भरी अदालत में वह दुष्कर्म ग्रसित युवती दिखा ना पाती अपना सबूत रे!
और दिल-ही-दिल में टूट जाती है, व न इन्साफ मिलने पे वो करती है आत्महत्या रे!
ठहरो-ठहरो इनको रोको, ये तो बहसी-दरिन्दें हैं ।
इस तरह बच जाते है बहसी-दरिन्दें और फिर करते बलात्कार रे!
क्या इन्साफ है सत्य के दरबार में
जो बचा न सकती दुष्कर्म ग्रसित युवती को
ठहरो-ठहरो इनको रोको, ये तो बहसी-दरिन्दें हैं ।
विकास कुमार
फूलहि फरहि न बेंत
विकास जी आप अखबार में लेख लिखें।