ठेस की आदत मलिन है
चैन से अब सो रहा मन
मत जगा अब आग तू,
दूर हो जा स्वप्न से भी
मत लगा अब आग तू।
आग केवल शान्त है।
भीतर पड़े हैं कोयले
फूंक मत, रहने दे ऐसे
मत जला अब बावरे।
शांत जल तालाब का
लहरें उठा कर खामखाँ
मत अमन में विघ्न कर तू
बात इतनी मान ना।
राह अपनी शांत अपना
दूसरों को ठेस मत दे,
ठेस की आदत मलिन है
यह बुरी लत फेंक दे।
अति उम्दा सर
बहुत बहुत धन्यवाद
उम्दा लेखन
सादर आभार
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद
सुन्दर
सादर आभार
सुंदर शिल्प व भाव
बहुत बहुत धन्यवाद