ढूंढो मेरा प्रेम पथिक !
ढूंढो मेरा प्रेम पथिक !
जाने कहाँ खो गया है
कंकड़ीली-पथरीली राहों में
विस्मृत-सा हो गया है
उदासीन राहों में राही
तुम भी भटक ना जाना
मेरा प्रेम मिले जो कहीं
उसे मेरी याद दिलाना
देना मेरा हाल पता
उसकी भी सुध लेते आना
यदि वह माने बात तुम्हारी
तो अपने संग ही ले आना…
अपने प्रेमी को अपनी याद दिलाने की और उसे स्वयं से मिलवाने की किसी से गुज़ारिश करती हुई कवि प्रज्ञा जी की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
अति, अतिसुंदर रचना
सुन्दर