तराना गुनगुनाती है

दिल का भवन तो आपका
बेहद सजीला है,
फटे से पांव रखने में
मुझे लज्जा सी आती है।
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आप हो सामने तो
मुस्कुराहट छुप सी जाती है
मगर भीतर ही भीतर से
तराना गुनगुनाती है।

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Responses

  1. कवि सतीश जी की अति भाव पूर्ण रचना है ।बे हिसाब गहराई लिए हुए अति शालीन प्रस्तुति । लेखनी से शानदार साहित्य प्रस्फुटित हुआ है ।

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