ता उम्र
ता उम्र मैं इक अनजान सी राह में रहा,
जागते हुए भी मैं सफ़र ए ख़्वाब में रहा,
वो जिसे पाने को भटका मैं दर बदर ज़माने में,
अंत समय में जाना वो मेरी जिस्मों जान में रहा,
पार नहीं कर पाया जिस समन्दर को मैं,
हर रोज उसी समन्दर के मैं बहाव में रहा,
चुभती रही जो दूर रहकर भी बात मुझे सनम की,
हकीकत में मैं हर मोड़ पर उसी के साथ में रहा॥
राही (अंजाना)
Nice
थैंक्स
Thanks
Nice
Nice one Rahi 🙂