तिमिर बढ़ती जा रही
अवसाद के बादल घिरे
पर तुम न आये प्रिये
यह तिमिर बढ़ती जा रही
बुझे हर उजास के दिये ।
आक्रोश है या ग्लानि इसे नाम दू
कैसे खुद ही मौत का दामन थाम लूँ
मकबूल नहीं यह शर्त हमको
कयी मुमानियत जो हैं दिये ।
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Pragya Shukla - December 6, 2020, 10:56 pm
सुंदर तथा हृदयविदारक पंक्तियां
Suman Kumari - December 7, 2020, 1:32 pm
सादर आभार
Piyush Joshi - December 7, 2020, 7:48 am
बहुत अच्छी कविता
Suman Kumari - December 7, 2020, 1:32 pm
सादर धन्यवाद
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - December 7, 2020, 10:26 am
बेहतरीन
Suman Kumari - December 7, 2020, 1:32 pm
सादर धन्यवाद
Geeta kumari - December 7, 2020, 2:11 pm
ह्रदय स्पर्शी रचना
Suman Kumari - December 7, 2020, 6:00 pm
सादर आभार
Satish Pandey - December 7, 2020, 10:52 pm
बहुत खूब