तिमिर बढ़ती जा रही
अवसाद के बादल घिरे
पर तुम न आये प्रिये
यह तिमिर बढ़ती जा रही
बुझे हर उजास के दिये ।
आक्रोश है या ग्लानि इसे नाम दू
कैसे खुद ही मौत का दामन थाम लूँ
मकबूल नहीं यह शर्त हमको
कयी मुमानियत जो हैं दिये ।
अवसाद के बादल घिरे
पर तुम न आये प्रिये
यह तिमिर बढ़ती जा रही
बुझे हर उजास के दिये ।
आक्रोश है या ग्लानि इसे नाम दू
कैसे खुद ही मौत का दामन थाम लूँ
मकबूल नहीं यह शर्त हमको
कयी मुमानियत जो हैं दिये ।
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सुंदर तथा हृदयविदारक पंक्तियां
सादर आभार
बहुत अच्छी कविता
सादर धन्यवाद
बेहतरीन
सादर धन्यवाद
ह्रदय स्पर्शी रचना
सादर आभार
बहुत खूब