तुम्हारी भाग वाली खोपड़ी है
हमारी मुफलिसी को क्या समझो तुम
तुम्हारे महल, हमारी झोपड़ी है,
हमारी राह में संघर्ष खड़ा
तुम्हारी भाग वाली खोपड़ी है।
हमें नसीब बड़ी मुश्किल से
रोटियां पेट भर को खाने को,
तुम्हारे पास फेंकने को है,
कूड़ेदानों में डालने को है।
तुम्हें तो मूल्य का पता ही नहीं
दाने-दाने में कितना जीवन है,
उसके एवज में रात-दिन खपते
तब कहीं साँस लेता जीवन है।
तुन्हें जीवन मिला है वरदानी
विधाता ने दिया है धन-पानी
उड़ाओ खूब मजे ले लो मगर
नजर बना के रखो इंसानी।
Bahut khoob, very nice
वाह वाह
“उड़ाओ खूब मजे ले लो मगर नजर बना के रखो इंसानी।”
जो लोग धन का दुरुपयोग करते हैं, अन्न का सम्मान नहीं करते हैं उनके ऊपर कवि सतीश जी ने, कविता के माध्यम से बहुत अच्छा तंज किया है। बहुत ही उच्च स्तरीय व्यंग्यात्मक लेखन
अतिसुंदर भाव
सुन्दर रचना