तुम्हारे लिए

शब्द-शब्द पिरोकर,
कविता की माला बनाऊं तुम्हारे लिए।

माला के हर मनके में,
मन के मनोभाव सजाऊं तुम्हारे लिए।

लहराते उजले दामन में,
प्रेम का रंग चढ़ाऊं तुम्हारे लिए।

थरथराते गुलाबी अधरों पे,
प्रेम का रस बरसाऊं तुम्हारे लिए।

महकाया जीवन के उपवन को,
फूलों से सेज महकाऊं तुम्हारे लिए।

रौशनी लजाती गर प्रेमालाप में,
जलता दीपक बुझाऊं तुम्हारे लिए।

देवेश साखरे ‘देव’

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

+

New Report

Close