तुम
रात अंधियारी थी उसमें
चाँद सी तुम साथ थी,
साँस उलझन में भरी थी,
क्या पता क्या बात थी।
चाहते थे खूब कहना
बोल पाये थे नहीं,
अश्क आये थे उमड़
हम रोक पाये थे नहीं।
तुम न होती तो उजाला
किस तरह दिखता हमें,
चैन उस भारी निशा में
किस तरह मिलता हमें।
तुम दवा सी तुम दुआ सी
जिन्दगी की रोशनी हो,
तुम हो तो जीवन है जीवन
वाकई तुम रोशनी हो।
बहुत सुंदर कविता लिखी है सतीश जी आपने ।
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
मन को भाने वाली, सहजता के साथ व्यक्त की गयी अतिसुंदर रचना ।
सादर धन्यवाद
समय विपरीत होने पर भी जिसने सहायता की उसके लिए बहुत ही प्रेम भरी रचना
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर