तेरी यादें

ज़िन्दगी को जहर की तरह
पी रही हूँ l
रोज तिल-तिल मर रही हूँ,
मगर जी रही हूँ l
ज़िन्दगी की आधी ख़ुशियाँ छिन गई हैं,
आधी को देख कर ही जी रही हूँ l
गोद में खेली वो गुड़िया मेरी,
उसकी जुदाई जाने कैसे सह रही हूँ
याद तू आती है हर वक़्त मुझको,
मगर यह बात किसी से कह नहीं रही हूँ l
जीवन लगने लगा है बोझ लेकिन,
फ़िर भी मैं इसको ढ़ो रही हूँ l
तू नहीं आएगी अब कभी मेरी बिटिया,
फ़िर भी तुझे याद करके मैं रो रही हूँ

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Responses

  1. असहनीय दर्द है, लेकिन सहना होगा,
    ठेस बहुत बड़ी है, लेकिन सहना होगा।
    तुम्हारे हाथ में नहीं है हाथ की रेखाएं बदलना।
    अपने दायित्व निभाने को जीना होगा।
    भुला सकना संभव भी नहीं है मगर
    यादों के सहारे जीना होगा।

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