*तो हम जानें*
कविता बहुत कही होंगी अब तक,
कहानी कोई कहो तो जानें
सभा तो बहुत सजाई होंगी अब तक,
तन्हा कभी वक्त गुजारो तो जानें
अंजुमन से निकलना है बहुत आसां,
मन से निकल कर दिखाओ तो जानें
ये शहर है अनजानों का मगर,
अगर कोई अपना मिले तो मानें..
*****✍️गीता
“ये शहर है अनजानों का मगर,
अगर कोई अपना मिले तो मानें”
किसका है ये तुमको इन्तजार मैं हूँ ना !!
😊😊😊😊😊
Thank you pragya
आपकी हर एक पंक्ति
पर मेरे मन में कुछ विचार आ रहे हैं
भाव की दृष्टि से रचना उत्तम है
साथ ही तुकांत भी कॉफी सराहनीय है
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी 🙏
अतिसुंदर
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏