दर्द
जीवन जुड़ा दर्द लिखना
जीवन से जुड़ा दर्द पढ़ना
मेरी आदत में शामिल है
सच कहना, सच को ही सुनना।
कवि कुछ सच्ची कविता कह दो
जिसमें जीवन की पीड़ा उभरे
वो घाव भरने ही होंगे
चाहे वो हों कितने गहरे।
जीवन जुड़ा दर्द लिखना
जीवन से जुड़ा दर्द पढ़ना
मेरी आदत में शामिल है
सच कहना, सच को ही सुनना।
कवि कुछ सच्ची कविता कह दो
जिसमें जीवन की पीड़ा उभरे
वो घाव भरने ही होंगे
चाहे वो हों कितने गहरे।
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क्या बात है, गजब
धन्यवाद, बस एक कोशिश
वाह वाह, चंद्रा जी, बहुत बढ़िया
“जीवन जुड़ा दर्द पढ़ना मेरी आदत में शामिल है”
बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं चंद्रा जी,बहुत सुंदर भाव ,वरना आजकल किसी के
पास दूसरों कि पीड़ा सुनने के लिए ना तो फुर्सत है और ना ही फितरत।
ये कार्य कोमल हृदय और सरल व्यक्तित्व ही कर सकते हैं।आपके अंदर वो बात है चंद्र जी।
“मैं हंसी तो हंस दिया संग मेरे ये जहां,
वरना किसी को, किसी के अश्क देखने की फुरसत कहां”
(मेरी कविता की चंद पंक्तियां)… आपकी बहुत सुंदर प्रस्तुति, लेखनी को मेरा प्रणाम…
अतीअतिसुंदर भाव
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
Nice line
वाह बहुत खूब