दिल ए इज़हार मत करना।

छुपाकर ही रखना बेबसी,
मानुष !
दिल ए इज़हार मत करना,
कर लेना बातें,परछाईं से अपनी,
जमाने को दीदार मत करना,
और बैठे हैं लोग खोल कर कानों को,
दर्द ए इक़रार मत करना,
माना कि मन हल्का होता है
जताने से,
मगर बहुत मशग़ूल है लोग आजकल उड़ाने में,
हमदर्द तो अब अपनों में नहीं मिलते
गैरों पर भी विश्वास मत करना,
दर्द ए इक़रार मत करना।

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