*दीपावली अयोध्या की*
नभ से सुर सब देख रहे थे,
धरा पे कितने दीप जले
“जय श्री राम”, के उद्घोष से,
गूंजी अयोध्या, सरयू के तीरे
लाखों की संख्या दीपों की,
कौन कहे निशा अमावस की
जगमग-जगमग हुई अयोध्या,
नगरी है श्री राम की
ज्योति-पर्व की इस बेला में,
आलोकित हर मन का आंगन
घर-घर दीप जले हिन्द में,
आलोकित हर घर का आंगन
हिन्द हर्षित हो उठा है,
उल्लास की लहर चहुं ओर,
लखन, सिया संग श्री राम पधारे
नृत्य कर उठा मन का मोर
भरत-मिलाप का दृश्य देख कर,
हो उठे सब भाव-विभोर
आज प्रसन्न हैं कौशल्या माई,
राम लखन संग सीता आई
*****✍️गीता
Very good
Thanks
अतिसुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी 🙏
बहुत ही सुंदर और लाजवाब लेखन। यह प्रखरता बनी रहे।
इस प्रेरक समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी । उत्साह वर्धन के लिए आभार
वाह अद्भुत चित्रण अति सुंदर रचना
सुन्दर समीक्षा हेतु हार्दिक धन्यवाद ऋषि जी
नभ से सुर सब देख रहे थे,
धरा पे कितने दीप जले
“जय श्री राम”, के उद्घोष से,
गूंजी अयोध्या, सरयू के तीरे
लाखों की संख्या दीपों की,
कौन कहे निशा अमावस की
जगमग-जगमग हुई अयोध्या….
बहुत प्यारी कविता
इस समीक्षा हेतु हार्दिक धन्यवाद प्रज्ञा जी