दीप ऐसा जलाओ
दीप ऐसा जलाओ
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दीप ऐसा जलाओ ऐ दिलबर
हर तरफ रौशनी -रौशनी हो।
न अमावस की हो रात काली
हर निशा चांदनी -चांदनी हो।।
कोई जलाए दीप कंचन का
और जलाए कोई चांदी का।
श्वेद सिक्त माटी ले वतन की
दीप माला बने सुखराती का।।
प्रेम का तेल निष्ठा की बाती
ज्ञान की राह रौशनी रौशनी हो।। दीप ऐसा
कोई मंदिर में जाके जलाए
और जलाए कोई निज घरों में।
कोई पनघट पे जाके सजाए
और जलाए कोई चौडगरों में ।।
एक दीपक ‘विनयचंद ‘ जलाना
वीर के राह में रौशनी रौशनी हो।। दीप
दिल में दीपक जला देशभक्ति के
हो गए बलिदान जो वीर बेटे।
कर विनयचंद ‘ वहाँ पर उजाला
जहँ समाधि में हो वीर लेटे।।
नाम उनके भी दीपक जलाओ
हर कदम रौशनी रौशनी हो।। दीप ऐसा
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पं. विनय शास्त्री ‘ विनयचंद ‘
बस्सी पठाना (पंजाब)
अति सुंदर भाव भाई जी बहुत सुंदर रचना
दीप ऐसा जलाओ ऐ दिलबर
हर तरफ रौशनी -रौशनी हो।
न अमावस की हो रात काली
हर निशा चांदनी -चांदनी हो।।
वाह वाह, शास्त्री जी बहुत खूब
GOOD SIR
अति सुंदर रचना
सुंदर भाव प्रगणता एवं शिल्प मजबूत है..