दुनिया एक अखाड़ा

ये दुनिया बनता एक अखाड़ा है।
हर कोई लिए हथियार खड़ा है।।

कभी मजहब के नाम फसाद।
तो कभी सबब ज़मीं जायदाद।
हर एक, दूसरे से बड़ा है।
हर कोई लिए हथियार खड़ा है।
ये दुनिया बनता एक अखाड़ा है।।

भाई, भाई के खून का प्यासा।
नहीं बचा प्रेमभाव जरा सा।
इंसान किस फेर में पड़ा है।
हर कोई लिए हथियार खड़ा है।
ये दुनिया बनता एक अखाड़ा है।।

कल तक, नारी को पूजता संसार।
आज है, उनकी आबरू तार-तार।
देखो कैसे मानसिकता सड़ा है।
हर कोई लिए हथियार खड़ा है।
ये दुनिया बनता एक अखाड़ा है।।

देवेश साखरे ‘देव’

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