दुर्योधन और दु:शासन
मनु की संतान पर तंज कसने की कोशिश की है मैनें..
नया विषय और भारत की समस्याओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा की है मैनें…
द्वापर छोंड़ दुर्योधन और
दुःशासन
कलयुग में आए..
मानव को सताने के
नए-नए हथकंडे अपनाए…
किसी ने सीखी शस्त्र विद्या
किसी ने अस्त्र विद्या…
और दुराचार के पैतरे भी
सीख कर आए…
जब पहुँचे भारत की
भूमि पर
रह गये आश्चर्यचकित
ब्रज भूमि पर..
कृष्ण मंदिर का
नामोनिशान नहीं
कुरुक्षेत्र महज
शमशान नहीं..
हँस पड़े हिन्दू-मुसलमां
पर
मस्जिद में पढ़ते कलमां
पर…
नेता की मालखोरी पर,
पुलिस की रिश्वतखोरी पर…
किसान की आत्महत्या पर,
युवाओं की बेरोजगारी पर…
रो पड़े जवान की मृत्यु पर..
कोरोना जैसी महामारी पर…
नारी की लाचारी पर…
कहने लगे दोनों भाई
यह भारत पर कैसी विपदा
आई…
हम लड़ते थे सिर्फ स्वाभिमान की खातिर…
यह सब मर रहे अभिमान की खातिर…
जिस धरती पर हमनें जन्म लिया…
कुछ पाप किये कुछ पुण्य
किया…
यह हमारी तो जन्मभूमि
नहीं…
जो छोंड़ी थी वह भारत
भूमि नहीं…
अब चलो यहाँ से चलते हैं..
ब्रह्मा जी से जाकर मिलते हैं..
पूँछते हैं यह किसकी औलादें हैं,
यह तो मनु की संतान नहीं…
इस कविता को साहित्य अकादमी द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए…
आपकी लेखनी बहुत ही सही विषयों पर चल रही है..
आपके अंदर साहित्य सृजन की असीमित प्रतिभा है..
उत्तम विषय पर सुन्दर रचना
इसकी तारीफ शब्दों के माध्यम से करने में असफल हूँ..
Achcha likha hai
तंज कसने की कला अद्दभुत है..
इतनी अराजकता फैली है समाज में की
दुर्येधन भी शर्मा जाए
तथा समाज मे जो समस्याएं है उन्हें भी आपने उजागर किया है
मैने कहा था आपसे
समाज मे कलम का प्रभाव पड़ता है..
आपने मेरी बात का मान रखा है
सही बात कही है आपने
हमेशा की तरह सराहनीय अभिव्यक्ति
Sunder
आजकल के परिपेक्ष्य का यथार्थ चित्रण करती हुई समसामयिक रचना। बहुत सुंदर
🙏🙏