दुलहिन गिरिजा माता : अनुदित रचना
दुलहिन गिरिजा माता
सुचारुकबरीभारां चारुपत्रकशोभिताम्।
कस्तूरीबिन्दुभिस्सार्धं सिन्दूरबिन्दुशोभिताम्।।
रत्नेन्द्रसारहारेण वक्षसा सुविराजिताम्।
रत्नकेयूरवलयां रत्नकङ्कणमण्डिताम्।।
सद्रत्नकुण्डलाभ्यां च चारुगण्डस्थलोज्ज्वलाम्।
मणिरत्नप्रभामुष्टिदन्तराविराजिताम्।।
मधुबिम्बाधरोष्ठां च रत्नयावकसंयुताम्।
रत्नदर्पणहस्तां च क्रीडापद्मविभूषिताम्।।
भाषा भाव
केशपाश कुसुमित सालि पत्र रचित बड़ सुन्दर।
कस्तूरी सिन्दूर के टीका,भाल बीच नव दिनकर।।
कंठहार उरोज विराजित,रत्न महामणि मंडित।
कंगन बाजूबंद सुशोभित,कुंडल कलश अखंडित।।
रत्न जड़ित कुंडल की कांति,गाल युगल पर छाई।
सुघर बतीसी दमदम दमके,अधर सुफल बिम्बा की नांई।।
रचित महावर युगल हस्त में,क्रीड़ा कमल मनोहर दर्पण।
दुलहिन गिरिजा माता पर,सुन्दरता सब अर्पण।।
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Geeta kumari - February 19, 2021, 8:36 pm
गौरी मां की दुल्हन स्वरूप में अति सुंदर रचना
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - February 19, 2021, 10:09 pm
जय माँ गिरिजा
Satish Pandey - February 20, 2021, 11:11 am
बहुत बहुत बहुत सुंदर रचना, वाह