दोधारी तलवार
क्यों दोधारी तलवार से हैं लोग…
क्यों सच को स्वीकार नहीं कर पाते हम लोग….
जानते हैं कुछ साथ नहीं कुछ जाना
फिर भी क्यों जोडने की होड़ में लगे हैं लोग…
सब कहते है भगवान एक है
फिर क्यों अनेक रूप साबित करने में लगे हैं लोग…
कहते हो अपने तो अपने होते हैं
फिर क्यों अपनों को बेगाना बनाने में लगे रहते हैं लोग…
क्यों दोधारी तलवार से हैं लोग…
क्यों सच को स्वीकार नहीं कर पाते हम लोग…।
वाह वाह
शुक्रिया जी
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद जी
सुन्दर
धन्यवाद जी
वाह अन्नु जी। रचना में कही गई बात १०० प्रतिशत सही है।
बहुत शुक्रिया जी
Thought full
Thanks