दौलत
कोई ज़मीं बेचता, कोई आसमां बेचता ।
दौलत के नशे में चूर, ये ज़हां बेचता ।
कब परवान चढ़ा, मोहब्बत मुफ्लिशी का,
दौलत मोहब्बत का है, आशीयां बेचता ।
दर-दर की ठोकरें, मुफ्लिशी के हालात,
दौलत की खातिर इंसां, अरमां बेचता ।
तारीख़ गवाह, कब दौलत किसका हुआ,
दौलत को ख़ुदा मान, अपना ख़ुदा बेचता ।
लूटे हैं कई घर, ये दौलतमंद मानूस,
दौलत की बदौलत, वो खुशियाँ बेचता ।
देवेश साखरे ‘देव’
बिल्कुल सही जमाना के अनुसार
शुक्रिया
Good one bro
Thanks
Nice
Thanks
वाह बहुत सुंदर
धन्यवाद
Good
बहुत खूब