धरती माता

धरती माता ! धरती माता !
करूँ माँ कैसे मैं तेरा गुणगान,
आज तो निकली जा रही है सबके प्राण |
आज हर शै की रौनक जा चुकी है ,
चारो तरफ उदासी छा चुकी है |
कल तक चारो तरफ हरियाली ही हरियाली छाई थी |
देखकर ऐसी खुशहाली धरती माता की खुशी से आँखे भर आई थी |
पर आज का मंजर ही कुछ और है |
कल तक बात कुछ और था ,और आज का दौर ही कुछ और है |
आज सांसो में अजीब- सी घुटन है ,
ना जाने कोरोना वायरस जैसी तबाही का कौन सा ये चलन है |
पहले स्वच्छ हवा जीवन में रंग भरा करती थी ,
पर आज वहीं हवा प्रदूषित होकर जान लिया करती है |
आज लाशों की ढ़ेर लगी है,
कहीं बेटे, तो कहीं माएँ रो पड़ी है |
मैं पूछती हूँ कहाँ गयी तेरी रंग-बिरंगी खुश्बू से भरी हरियाली,
किसने छीन ली तुझसे तेरी खुशहाली |
धरती माता ! आज मैं करूँ तेरा क्या बखान,
पेड़ कट रहे है, बन रहें है फैक्टरी और मकान|
चिमनिंयों से निकलते धुएँ अब पूरी धरती को प्रदूषित करने की वजह बने है ,
कितनों के हाथ अब खून से सने है |
आओ! हर कोई पेड़ लगाने का प्रण ले,
जीव-जन्तु और वन्य प्राणियों को एक नया जीवन दे |
प्रकृति की विकृति जैसे सुनामी ,बाढ़ और प्रदूषित वातावरण बिगाड़ रही है अच्छी-खासी स्थिति,
जीवन अब शून्य हो रहे है,
पाप भी अब पूण्य हो रहे है |
आओ ! धरती माता को आज बचाएँ,
इसके लिए अपने हाथों से सभी एक पेड़ लगाएँ|
फिर से धरती माता को स्वच्छ व निर्मल बनाएँ |
एे! कोरोना वायरस का कहर तुझे अब जाना होगा ,
सबको मिलकर इस डर को हर किसी के अंदर से भगाना होगा |
ये पावनभूमि संत-महात्माओं का जन्मस्थल है
गंगा जैसी पवित्र नदी की बहती यहाँ शीलत जल है |
आज हॉस्पिटलो में ऑक्सीजन की कमी हो रही है ,
पर वहीं ऑक्सीजन देने वाले पेड़ों को काटने में कुछ लोगो की आँखो में नही है |
आज शुद्ध हवा के लिए मानव तड़प रहा है ,
जैसे उससे उसका संसार बिछड़ रहा है |
धरती माता !आज मैं करूँ मैं आपका क्या बखान,
जबकि सारी धरा ही बन रही हैआज शमशान |
तेरे बखान के लिए शब्द हलक से उतर नही रहें ,
तबाही का है आज एेसा मंजर कि जनजीवन सुधर नहीं रहे है |
कोई तो इस धरा की रौनक लौटा दो,
हर शै को फिर से महका दो |
इस धरा को मरूभूमि बनने से बचा लो |
अब कहाँ रहा नीला अंबर खुला आसमान,
तड़प-तड़प कर दम तोड़ रही है तेरी संतान |
धरती माता! धरती माता !
तेरा अब करूँ मैं क्या बखान ,
मुझको अब कुछ समझ नहीं आता |

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