धून्ध है चारों तरफ़

धून्ध है चारों तरफ़
रास्ते की खबर नहीं
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ
आती मंजिल नज़र नहीं ।
फिक्र अब कहाँ
ये जहाँ मिलें
निन्द है कहाँ
जो स्वप्न नया खिले
बढ सकूँ जहाँ
कोई ऐसी डगर नहीं
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ
आती मंजिल नज़र नहीं ।
कैसे धीर मैं धरूँ
ख़्वाहिश चूङ ऐसे हुयी
शीशे के गिरने से
बिखर के रह गयी
अपना किसी कहें
किसी पे दर्द का असर नहीं
जाऊँ तो जाऊँ कहाँ
आती मंजिल नज़र नहीं ।

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Responses

  1. जाने की सोचना ही करता जब दिवाली आने को हो
    अंधेरे की उम्र अब खत्म
    उजाला चहुंओर जाने को हो
    राहें कहां कभी भी बंद होती है
    कुछ कदम हिम्मत करें तो
    सौ नयी राह खुलती है

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