नजर नेक रही है
खुद को नफा दिलाओ मगर
जान बूझकर
नुकसान दूसरे का करो
ठीक नहीं है।
चोरी छिपे गलत करो
व साफ बन फिरो
भगवान की नजर है
तुम्हें देख रही है।
कितनी ही निगाहें
गड़ाइयेगा और पर
पाता है वही
जिसकी नजर नेक रही है।
दूजे की बुराई व बात
कीजियेगा मत,
अपनी तो कलम आजकल
सच फेंक रही है।
रहने भी दीजिये
न शब्द वाण मारिये
तिरछी नजर किसी का
जिगर छेद रही है।
—— डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
बहुत खूब, बहुत उम्दा
वाह वाह बहुत खूब वा सुंदर अभिव्यक्ति
सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह बहुत खूब सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत ही सुन्दर