नयन अश्कों से भिगोता रहा हूं मैं जिन्दगी भर
नयन अश्कों से भिगोता रहा हूं मैं जिन्दगी भर ।
गजल उनको ही सुनाता रहा हूं मैं जिन्दगी भर ।
दरख्ते उम्मीद अब है कहां लगतें तेरे जमी पर
रकीबों सा अब तड़पता रहा हूं मैं जिन्दगी भर।
दुआओं का रुख बदलता रहा ताउम्र,गिरगिटों सा,
मुबारक फिर भी से करता रहा हूँ मैं जिन्दगी भर।
फ़िकर अब किसको रहा है जमाने में देख दिलवर,
दरद अपनी अब भुलाता रहा हूं मैं जिन्दगी भर।
मुकद्दर भी कब सही था हमारा इस दौर “योगी”
मगर रों रों कर हसाता रहा हूँ मेै जिन्दगी भर।
योगेन्द्र कुमार निषाद
घरघोड़ा,छत्तीसगढ़
7000571125
वाह
बहुत खूब