नसीब अपना अपना…
नसीब सबका है अपना – अपना ,
कहीं ख्वाब परवान चढ़े, कहीं हुआ झूठा कोई सपना।
ज़िन्दगी में जो मिला, वो भी कुछ काम ना था।
ऐसा भी नहीं है, कि कोई ग़म ना था।
कुछ दर्द ऐसे भी है, जो बिन कहे ही सह गए,
कुछ ख्वाब ऐसे भी हैं, जो आंसुओं संग बह गए।
वाह वाह, क्या बात है, बहुत सुन्दर, लेखनी की अदभुत क्षमता को सलाम
बहुत सारा धन्यवाद आपका सतीश जी। इतनी सुंदर समीक्षा के लिए आपकी आभारी हूं।🙏 आप खुद इतने अच्छे कवि हैं।
कृपया , दूसरी पंक्ति में काम के स्थान पर “कम” पढ़ें।
आपकी लेखनी गजब की ताकत है, वाह
बहुत बहुत धन्यवाद जी🙏 सादर आभार
बात में बहुत दम है। इसलिए तो रचना लाजवाब है।।
बहुत बहुत आभार सर, 🙏बहुत धन्यवाद।
बहुत ही दमदार पंक्तियाँ हैं, जय हो
🙏🙏
सुन्दर रचना
बहुत शुक्रिया सुमन जी🙏
Sunder
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏
बहुत ही सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद आपका पीयूष जी 🙏