नहीं मरेगा रावण
61-नहीं मरेगा-रावण
अहम भाव में बसता हूं मैं
कभी न मरता रावण हूं मैं
स्वर्ण मृग मारीच बनाकर
सीता को भी छलता हूं मैं..।
किसे नहीं है खतरा सोचो
केवल अपनी सोच रहे हो
रावण वृत्ति कभी न मरती
यह सुनकर क्यों भाग रहे हो..।
दुख का सागर असुर भाव है
क्या राम धरा पर आएंगे
सुप्त हुए सब धर्म-कर्म जब
रावण कैसे मर पाएंगे..।
धर्म बहुत होता त्रेता युग
तक केवल लंका में रहता
कलयुग पाप काल है ऐसा
रावण अब घर-घर में बसता.।
👌👌👌👌👌👌👌🙏🙏🙏👏👏👏
बहुत ही सुन्दर कविता 😊😊👏👏👏👏
👌👌👌👌🙏🙏🙏🙏
Wah 👌👌👌👌👌👌👌👌
धन्यवाद
Very nice
पांडे सर यदि आपने यह कविता प्रतियोगिता हेतु लिखी है तो इसे मुक्तक श्रेणी में अपलोड करने की बजाय poetry on picture contest पर अपलोड करना होगा।
जी.धनयवाद
इसे यहां पर डिलीट भी कर सकते हैं, पोएट्री ओन पिक्चर कांटेस्ट में ही इसके कमेंट आदि मान्य होंगे
मुक्ततक को डिलीट कैसे कर सकते कृपया मार्गदर्शन का कष्ट करें
Ati sundar 👏👏👌
बहुत सुंदर काव्य रचना।अहं का रावण कभी नहीं मर सकता।
धन्यवाद
बहुत सुंदर
धन्यवादसहृदय धन्यवाद
सहृदय धन्यवाद
सहृदय धन्यवाद
👍👌👌👌👌
बहुत सुंदर रचना
Very nice poem sir ji