नादान बचपन:-कहाँ गई वो गुड़िया
याद आती हैं वो बचपन की बातें
जब पापा के हाथों से
चोटी करवाती थी।
माँ लोरी गाकर सुलाती थी।
कहाँ गई वो बचपन गुड़िया ?
जिसकी शादी मैं रोज़ कराती थी।
बाबा की भजन संध्या में
मैं ही आरती सुनाती थी ।
भाईयों से रोज़ का झगड़ा
और माँ से खफ़ा हो जाती थी।
तुम बेटों को ही प्रेम करती हो
पापा की दुलारी बन जाती थी।
कहाँ गई वो बचपन की गुड़िया?
जिसकी शादी मैं रोज कराती थी।
कागज़ की नाव पर बैठकर
दुनिया की सैर हो जाती थी।
कहां गई वो बचपन की गुड़िया ?
जिसकी शादी मैं रोज कराती थी।
दादी बात-बात पर डाटती थी
उन्हें देखकर मैं पुस्तक खोल
पढ़ने बैठ जाती थी।
कहां गई वो बचपन की गुड़िया?
जिसकी शादी मैं रोज कराती थी।
मेले से हर बार मैं
चश्मा खरीद लाती थी।
भईया के तोड़ने पर
पापा से मार खिलाती थी।
कहां गई वो बचपन की गुड़िया?
जिसकी शादी मैं रोज कराती थी।
यही कुछ निशानियाँ हैं मेरे पास
‘नादान बचपन’ की
जब नानी के घर जाती थी।
जब माँ जबरन मुझे खिलाती थी।
कहाँ गई वो बचपन की गुड़िया?
जिसकी शादी मैं रोज कराती थी।
बचपन हर गम से बेगाना रहता है।
🙏
कहाँ गई वो बचपन गुड़िया ?
कहाँ गई वो बचपन, गुड़िया ?
कहाँ गई वो बचपन, वो गुड़िया ?
कहाँ गई वो बचपन और गुड़िया ?
प्रज्ञा जी इसमें से क्या चीज है जो गायब है
बहुत सुंदर रचना लगा जैसे बचपन लौट आया है
कुछ नहीं,पूरी पढ़ो जवाब मिल जायेगा
सुन्दर रचना
🙏
Nice & A-one
धन्यवाद
वाह
थैंक्स
बचपन की मीठी अभिव्यक्ति
जितनी तारीफ की जाए उतनी कम
🙏
🙏