नारी, नहीं रौनक हो तुम

नारी, नहीं रौनक हो तुम
घर की प्राण हो, जान हो तुम
भीतर खुशियों की खनखनाहट
बाहर अभिमान हो तुम।
माँ-बहन-पत्नी, बेटी
रिश्तों का मधुर गान हो तुम
कुछ भी कहे कविता मगर
जिंदगी की शान हो तुम।

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

  1. नारी के आदर्शों को प्रतिष्ठित करती हुई संवेदनशील तथा तथ्यपरक रचना

  2. कवि सतीश जी ने नारी के बारे में बहुत ही ख़ूबसूरत पंक्तियां लिखी हैं
    पूरी की पूरी कविता इतनी शानदार है कि समझ ही नहीं आ रहा है कि कौन सी पंक्तियां हाई लाइट करूं ,शानदार और मजबूत लेखनी की बेहद शानदार रचना ।
    काबिले तारीफ प्रस्तुति..

    1. इस सुंदर समीक्षागत टिप्पणी हेतु आपको हार्दिक धन्यवाद है गीता जी, इस उत्साहवर्धन हेतु आभार।

New Report

Close