नारी
अबला थी जो नारी अब तक
सबला बनके दिखलाएगी
पुरुष के हाथों की कठपुतली
अब दुनिया को चलाएगी ।
घुट घुट के यह मरती रही
मुंह से कभी भी आह न की
पुरुष ने अपनी राह बना ली
पर नारी को राह न दी ।
अब खुद अपने दम पर
वह परचम ऊंचा लहराएगी
अबला थी जो नारी अब तक
सबला बन के दिखलाएगी ।
त्याग और बलिदान में आगे
भारत की हर नारी है
चुप चुप रहकर हर जुल्म सहे
रो रो कर रात गुजारी है ।
अब ना सहेंगे जुल्म पुरुष का
संदेश यह जन-जन में पहुंचाएगी
अबला थी जो नारी अब तक
सबला बनकर दिखलाएगी।
वीरेंद्र
सुन्दर रचना
बहत खूब
वाह
👏👏
👌👌