नारी

कभी श्रापित अहिल्या सी पत्थर बन जाती है
कभी हरण होकर सीता सी बियोग पाती है
कभी भरी सभा में अपमानित की जाती है
कभी बेआबरू कर अस्मत लूटी जाती है

कभी बाबुल की पगड़ी के मान के खातिर
अपने सारे अरमानो की अर्थी सजाती है
कभी सावित्री सी पति के प्राण के खातिर
बिना समझे बिना बुझे यम से लड़ जाती है

कभी कर्त्तव्यविमूढ पन्ना धाय बन जाती है
कैसी भी हो बिपदा कैसा भी संकट हो
अपने परिवार की ढाल बन जाती है
ये नारी शक्ति है जो इतना कुछ सह जाती है

ऋषभ जैन “आदि”

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

New Report

Close