नारी
कभी श्रापित अहिल्या सी पत्थर बन जाती है
कभी हरण होकर सीता सी बियोग पाती है
कभी भरी सभा में अपमानित की जाती है
कभी बेआबरू कर अस्मत लूटी जाती है
कभी बाबुल की पगड़ी के मान के खातिर
अपने सारे अरमानो की अर्थी सजाती है
कभी सावित्री सी पति के प्राण के खातिर
बिना समझे बिना बुझे यम से लड़ जाती है
कभी कर्त्तव्यविमूढ पन्ना धाय बन जाती है
कैसी भी हो बिपदा कैसा भी संकट हो
अपने परिवार की ढाल बन जाती है
ये नारी शक्ति है जो इतना कुछ सह जाती है
ऋषभ जैन “आदि”
behtareen ji
Thanks
nice
Thanks
Very nice poem…keep it up
Thanks