पतझर
आंखे तेरी सब कह देती है
हाले दिल बयां कर जाती है
जो कह नही पाते हो जुबान से
वही दर्द वो चुपके से बता जाती है
संगी बिन जीना कितना मुश्किल
दिल का आर्तनाद सुना जाती है
जो प्यार तुम जीवन भर बता ना सके
उसी प्रीत की चुगली कर जाती है…
उसने जताया पल-पल प्रेम,
मांग दुआ,
व्रत-उपवास रख
वो भी जुबान से कुछ ना कहती थी….
वो जीवित है भीतर तेरे,
चलती है श्र्वासो की तरह,
यह तेरे अश्रुरहित भीगे नयन,
गूंजती दबी सी हंसी
तभी तो पतझर से लगते हो।।
वो जीवित है भीतर तेरे,
चलती है श्र्वासो की तरह,
यह तेरे अश्रुरहित भीगे नयन,
गूंजती दबी सी हंसी
तभी तो पतझर से लगते हो।।
—– बहुत ही उच्चस्तरीय पंक्तियां रची गई हैं। पूरी कविता बहुत ही लाजवाब है। पंक्तियों के सुन्दर समन्वय, भाषा बहुत साफ सुथरी, भाव उच्चस्तरीय हैं। वाह
बहुत बहुत धन्यवाद जी
सुन्दर समीक्षा के लिए आभार
Bahut sundar rachna
बहुत बहुत धन्यवाद जी
बहुत खूब
बहुत शुक्रिया जी
आंखे तेरी सब कह देती है
हाले दिल बयां कर जाती है
********वाह, जीवन की सच्चाइयों को बयां करती हुई बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी
प्रेम की सादगी भरी परिभाषा दी है आपने…
Very good
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा