पत्नी देवो भव:
राजा दशरथ ने माना कहना,
अपनी पत्नी कैकेई का
एक वचन की खातिर देखो,
बहु-बेटे वन में जाते हैं,
प्राण त्यागने पड़े भले ही,
आज दशरथ जी पूजे जाते हैं।
श्री राम ने माना,
कहना सीता जी का
स्वर्ण-मृग के पीछे दौड़े,
चाहे उस घटना के कारण
राम-सिया दोनों ही बिछुड़े
हम उनके गीत बिछोह
के गाते हैं..
श्री राम पूजे जाते हैं ।
मंदोदरी की कही ना मानी,
रावण था कितना अभिमानी
मारा गया राम के हाथों,
सम्मान नहीं वो पाता है
और,आज तक जलाया जाता है ।
तो बगैर अपना दिमाग लगाए
करो वही जो पत्नी चाहे,
ये सूत्र बड़ा उपयोगी
जीवन सुखमय और यशस्वी बनाए ।
“जन-हित में जारी
आगे मर्ज़ी तुम्हारी”
*****✍️गीता
अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना कोई आपसे सीखे।
बहुत खूब मजेदार
बहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी 🙏 अभी महा काव्य रामायण के साक्ष्य दे दिए है ,फिर भी आप मुझे मियां मिट्ठू कह रहे है?
कवि गीता जी की हास्यपुट लिए यथार्थ रचना, उदाहरण भी वास्तविक हैं, सच्ची बात सच्ची कविता
सुन्दर समीक्षा के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी
बहुत बहुत आभार सर🙏
बेहतरीन
सादर धन्यवाद जोशी जी🙏
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद सुमन जी
Good
वाह बहुत खूब
रामायण के हरेक घटना और हरेक पात्र एक एक अनोखे। शिक्षक हैं
सादर धन्यवाद भाई जी बहुत आभार 🙏