पर वह ना उठी, बड़ी निष्ठुर थी !!
बड़ी ठण्ड है माँ !
बर्फ पड़ रही है
तू क्यों आग-सी तप रही है ?
बाहर इतनी धुंध छाई है
माँ मेरी जान पर बन आई है
लगाकर छाती से माँ बोली
आ बेटा ! गर्म कर दूं बदन तेरा
कल सुबह उठना
ढूंढ लूंगी स्वेटर तेरा
रात बीती माँ की हड्डियों से
चिपककर बेेटे की
सुबह मिलेगा स्वेटर
यह स्वर्णिम स्वप्न था आँखों में बेटे की
सुबह हुई तो नजारा ही कुछ और था
बेटा माँ से लिपटकर रो रहा था
और कह रहा था
उठ जा माँ ! तेरा बदन बिल्कुल बर्फ है
आग दाऊ घर जल रही
उठ भूमि से मौसम सर्द है…
पर वह ना उठी, बड़ी निष्ठुर थी !!
बड़े मन से यह कविता लिखी है जरूर पढ़िये…
पूरी पढ़ने की आवश्यकता नहीं है जितनी में मन लगा रहे सिर्फ उतनी ही पढ़िये…
यह कविता मैंने जब पांचवी में थी तब लिखी थी इसलिए दिल के करीब है
कुछ सुधार भी किया है कृपया कोई कमी हो तो बेझिझक बतायें
वाह! आपने कविता में जान के साथ साथ अश्क़ के समंदर भर दिया है। रचना पढ़ कर दिल में एक अजीब प्रकार की सिहरन का जन्म हो गया है। आपकी सारी कविताओं में से यह कविता मुझे बहुत ही सुन्दर लगी।अति उत्तम भाव में प्रेषित किया है।
धन्यवाद सर आपकी सराहना ही मेरी पूंजी है
बहुत बहुत सुंदर अति सराहनीय रचना
Tq
बहुत मार्मिक चित्रण है प्रज्ञा जी आपकी कविता का, एक गरीब बेबस मां का मरते दम तक अपने बच्चे को सहारा देना, बहुत ही ह्रदय स्पर्शी रचना , काबिले तारीफ़ प्रस्तुति
Thanks di
अतिसुंदर भाव अतिसुंदर रचना
Tq
सुन्दर रचना
Tq
बेहतरीन कविता..
इसे कहते हैं उच्चतम भाव
Tq