पलायन
गांव के खेत
बंजर होते गये
गांव के बुजुर्ग पेड़
रोते गये,
पुराने घर आँगन
टूटते रह गये।
जो गया लौट कर
आया नहीं।
शहर का हो गया
गांव फिर भाया नहीं।
वह चबूतरा टूटता
टूटता सा,
सोचता है स्वयं में
हुआ कैसा कि आखिर
जो गया भूल गया,
गांव का अपनापन
याद आया नहीं।
जो गया लौट कर
आया नहीं।
शहर का हो गया
गांव फिर भाया नहीं।
वह चबूतरा टूटता
टूटता सा,
____________ गांव से शहर आने पर और फिर गांव ना लौट पाने का बहुत ही हृदय स्पर्शी चित्रण प्रस्तुत किया है कवि सतीश जी ने अपने इस रचना में , अति उत्तम अभिव्यक्ति, उम्दा लेखन
बहुत सुंदर सतीस जी
अति उत्तम रचना
बहुत अच्छी कविता