पहचानी सी है
फिज़ा में खुशबू, पहचानी सी है।
छिपी कहां, मुझमें तू सानी सी है।
ढूंढे उसे जो खुद से अलग हो ,
मैं जिस्म और तू रूहानी सी है।
सूखी, बंजर जिंदगानी थी पहले,
मैं तपता सहरा, तू नीसानी सी है।
तेरे बगैर कुछ भी नहीं वजूद मेरा,
मेरी जिंदगी में, तू शादमानी सी है।
तूने छुआ तो, मैं फिर से जी उठा,
लगता परियों की, तू कहानी सी है।
कोई शक नहीं, तू ‘देव’ के लिए बनी,
खुदा की नेमत, तू निशानी सी है।
देवेश साखरे ‘देव’
1.सानी-मिलाया हुआ, 2.सहरा-रेगिस्तान,
3.नीसानी-बारिश की बूंदों जैसी, 4.शादमानी-ख़ुशी
Bahut khoob sir
Thank you
वाह
धन्यवाद