पहचान

होना था तेरा, पर तेरा होना ही सिर्फ मेरा पहचान नहीं |
तू था जरूरी, पर एक जरुरी ख्वाब नहीं |
सिर्फ तेरा होना ही, मेरा समान नहीं |
ख्वाब मेरे ख्याल कई,
मकसद और मेरे मुकाम कई |
अगर अस्तित्ब का पहचान नहीं,
तो जीवन जीने का मान नहीं |
“न साथ दिया, न समान किया |
ये भी कोई, वफ़ा का नाम नहीं |
हम बेवफा कैसे हुए ?
अस्तित्ब और ईमान से बढ़ कर कोई शान नहीं |
जब तक खुद का “पहचान ” नहीं,
जीवन जीने का कोई मान नहीं |

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Responses

  1. जहॉं तक इस कविता के भावों की बात है, बहुत ही अच्छी कोशिश है, हॉं, वर्तनी पर ध्यान देने की जरूरत है

    1. आपसे कही थी अगला कबिता… डर का नहीं बल का होगा…. बस वही प्रयास है

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