पहली मुलाक़ात

पहली मुलाक़ात
अनजाने में कुछ यूं टकराए,
किताबे भी हमसे दूर गई।
दो मासूम दिलो की ऐसी,
वो पहली मुलाक़ात हुई।।

सॉरी जो हमने बोला तो,
एक ओर सॉरी की आवाज हुई।
किताबो को समेटने की,
मुस्कराकर फिर शुरूआत हुई।।

उन लम्हों को हम समेट रहे ,
किताब समेटने की आड़ में।
दिल समेटने की फिर भी,
हर कोशिश बेकार हुई।।

किताबें समेटकर तुम उठे
पर खुद को ना यूं समेट सके।
शरमाती हुई नज़रों से फिर
एक और मिलन की चाहत हुई।।

दो मासूम दिलो की ऐसी,
वो पहली मुलाक़ात हुई।।
AK

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Responses

  1. कविता को पढ़ने से मन में कल्पनाओं का एक दृश्य सा बनता है।
    बहुत सुंदर।

    1. धन्यवाद सर, आप लोगो की तारीफ़ ही हम बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।

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