पाखंड
अजीब नौटंकी लगा रखी है जमाने ने
मेरी विकलांगता पर खुल के हंसते हैं
और अपनी कमी को दिन रात रोते हैं;
गिर पड़ी जब ठोकर खाकर पत्थर से
अंधा बताकर हमे मज़े लेते रहे खूब वे
पर जब खुद अंधे हुए धूल में चलने से
अपने आप को गमगीन बेचारा बताते रहे।
©अनुपम मिश्र
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - October 5, 2020, 6:31 pm
सुंदर
Anupam Mishra - October 6, 2020, 12:31 pm
आपने हमारी कविता पढ़ने के लिए अपना अमूल्य समय दिया. आपका बहुत बहुत धन्यवाद. आपकी मैथिलि की कविता पढ़ी मैंने पर उस पर प्रतिक्रिया कैसे करते हैं यह समझ नहीं आया तभी.
Geeta kumari - October 5, 2020, 7:02 pm
सुन्दर अभिव्यक्ति
Anupam Mishra - October 6, 2020, 12:32 pm
बहुत बहुत शुक्रिया आपका गीता जी
Satish Pandey - October 6, 2020, 4:45 pm
उम्दा रचना