Categories: मुक्तक
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
मेरी हार …
मोहब्बत में हारे, क़यामत में हारे की ये ज़िंदगी हम शराफत में हारे.. न कोई है अपना ,न कोई पराया, अब जियें किसलिए और किसके…
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार
बना दो बिगड़ी सबकी मेरे सरकार सब सर नवाते हैं, तेरे दर पर मेरे राम कोई तुझसे क्या माँगे, तुम किसी को क्या देते हो…
पिता
एक पिता आख़िर पिता होता है.. जीवन की छाया ख़ुशियों का साया पिता जो हो तो जीने में अलग अंदाज़ होता है पिता हर घर…
करो परिश्रम ——
करो परिश्रम कठिनाई से, जब तक पास तुम्हारे तन है । लहरों से तुम हार मत मानो, ये बात सीखो त जब मँक्षियारा नाव चलाता,…
वाह
धन्यवाद