पीर-फकीर-सा मेरा जीवन
जब-जब चलना सीखा हमने
लोगों ने रोड़े ही लगाये
खुशी के आँसू निकल ना पाए
दुःख ही दुःख
हमने अपनाए
जाने क्या है भाग्य में मेरे
जो मैं करती
सबकुछ उल्टा
पीर-फकीर सा मेरा जीवन
उल्टी नदिया में ही बहता रहता….
जब-जब चलना सीखा हमने
लोगों ने रोड़े ही लगाये
खुशी के आँसू निकल ना पाए
दुःख ही दुःख
हमने अपनाए
जाने क्या है भाग्य में मेरे
जो मैं करती
सबकुछ उल्टा
पीर-फकीर सा मेरा जीवन
उल्टी नदिया में ही बहता रहता….
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अतिसुंदर भाव
धन्यवाद
“पीर-फकीर सा मेरा जीवन उल्टी नदिया में ही बहता रहता….”
जीवन के दुख को दर्शाती हुई कवि प्रज्ञा जी की बेहद संजीदा रचना
धन्यवाद आपका
सुंदर अभिव्यक्ति
धन्यवाद