पुष्प पलाश के
लाल ओढ़नी ओढ़ कर,
देखो पलाश इठलाते हैं।
वन में फैली है अग्नि ज्वाला,
ऐसा स्वरूप दिखलाते हैं।
होली आने से पहले ही,
पलाश ने कर ली तैयारी।
लाल रंग के पुष्प खिला कर,
महकाई है वसुधा सारी।
लाल रंग की, प्रकृति ने
सिन्दूरी आभा बिखराई है।
सृष्टि स्वयं ही बता रही है,
ऋतु बसन्त की आई है।
बागों में कोयल आई है,
तुम भी अब आ जाओ ना।
सुर्ख़ पलाश के पुष्पों जैसी,
ख़ुशबू बिखरा जाओ ना।।
_____✍️गीता
बहुत ही सुन्दर रचना,,,बसंत की शूभकामनाये
बहुत-बहुत आभार सर 🙏
बहुत खूब
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी 🙏
अत्यंत मधुरिम रचना, वाह
इस प्रेरक और उत्साह वर्धक समीक्षा हेतु हार्दिक धन्यवाद सतीश जी