पूरा का पूरा भीग जाऊं
रिम झिम बर्षा
बरसे जा
भीतर का
सारा जल उड़ेल दे ,
ऐसे उड़ेल दे कि ऊपर की परत छिन्न-भिन्न न होने पाये
तेरा प्रवाह मेरी नाजुक परत को छिल कर
दूर बह न जाए,
बल्कि मेरे भीतर समा जाए गहरे,
पूरा का पूरा भीग जाऊं
बाहर से अंदर तक,
फिर नयी कोमल
कोपल उगे मेरे भीतर से
तेरे प्रेम की। …….
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति
धन्यवाद जी
कुछ लोग बारिश को महसूस कर पाते है बाक़ी सब सिर्फ़ भीगते है
सुन्दर लेखन के लिए आपको बधाई
धन्यवाद जी
अतिसुंदर रचना
सादर धन्यवाद जी
गजब, सुंदर
धन्यवाद
waah ji waah
Thanks