पेट के ख़ातिर
मैं मजदूरी करता हूँ
समझो पेट के ख़ातिर।
पर खून पसीने का मेरे
मोल कहाँ सेठ के खातिर।।
मैं मजदूरी करता हूँ
समझो पेट के ख़ातिर।
पर खून पसीने का मेरे
मोल कहाँ सेठ के खातिर।।
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बहुत सुंदर पंक्तियाँ
धन्यवाद पाण्डेयजी सर्वश्रेष्ठ कवि और प्रतियोगिता के विजेता बनने की बधाई
समाहार सुंदर है
सुंदर
सुंदर समीक्षा हेतु हार्दिक आभार
१०० प्रतिशत सही फरमाया आपने।
धन्यवाद
बहुत सुन्दर कविता है वाह
धन्यवाद
सुंदर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
एक मजदूर की पीड़ा को व्यक्त किया है आपने अपनी रचना के द्वारा,
बहुत सुंदर👏👏
मजदूरों की व्यथा को व्यक्त करती बहुत ही प्यारी रचना