पेट में हैं दांत…!! मैं मजदूर कहाऊं
नही हाथ में उंगलियां
पर पेट में हैं दात
जितना कमाती है किस्मत
उतना खाती आंत
उतना खाती आंत
करूं क्या मुझे बताओ
मेरी हालत पर
तुम ना हमदर्दी दिखाओ
काम कराओ
फिर मुझको दो
हक का दाना
मजदूर हूँ पर
मजबूर ना हमें बतलाना
कर्म करके भरता हूँ पेट
मुफ्त की मैं ना खाऊं
हूँ मजदूर इसी कारण
मैं मजबूर कहाऊं…
कर्म करके भरता हूँ पेट
मुफ्त की मैं ना खाऊं
हूँ मजदूर इसी कारण
मैं मजबूर कहाऊं…
_________ मजदूर वर्ग पर लिखी हुई कवि प्रज्ञा जी की एक बेहतरीन रचना
Thanks
नही हाथ में उंगलियां
पर पेट में हैं दात
जितना कमाती है किस्मत
उतना खाती आंत
उतना खाती आंत
करूं क्या मुझे बताओ
मेरी हालत पर
तुम ना हमदर्दी दिखाओ
काम कराओ
फिर मुझको दो
हक का दाना।।
उच्चकोटि की रचना लिखी है आपने मजदूरों की व्यथा का ह्रदयस्पर्शी वर्णन
Thanks
बहुत सुंदर
Tq