प्यार किसे कहते हैं..
‘मेरे इज़हार पर कुछ यूँ लगा तू हाँ की मुहर,
दुनियाँ देखे कि इकरार किसे कहते हैं..
तेरे सिवा मुझे उस पर भी यकीं है ऐ खुदा,
हूँ मुतमईन के ऐतबार किसे कहते हैं..
किसी उम्मीद पर आए थे तेरे दर पे सनम,
वरना मालूम था इनकार किसे कहते हैं..
तेरी खुशी के लिए खुद से उलझ पड़ता हूँ,
तुझे क्या इल्म के तकरार किसे कहते हैं..
अपने हिस्से की हमने हर खुशी उसे दे दी,
कोई सीखे ये हमसे प्यार किसे कहते हैं..’
– प्रयाग धर्मानी
मायने :
मुहर – निशान/चिन्ह
यकीं – विश्वास
मुतमईन : निश्चिंत
इल्म – ज्ञान
बहुत, बहुत, बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ, सैल्यूट
बहुत बहुत आभार आपका
बेहतरीन
आभार आपका
Sunder
बहुत शुक्रिया आपका