*प्रतीक्षा में पिया की*
रात रूपहली रजत छिड़कते,
झिलमिल तारों संग
आ गए चंद्र-किशोर
देख ऐसी छटा अम्बर पर,
किसका मन ना हो विभोर
एकान्त रात्रि, शान्त पवन है,
कुछ शान्त-अशान्त सा,मेरा मन है
रात रूपहली, प्रतीक्षा में पिया की
बैठी थी मैं अकेली
नभ में चांद बादल की,
ओट में आ गया
ऐसा लगा था देख कर,
जैसे वो शरमा गया
कोई अपना मुझे भी,याद आ गया
एक सपना सा खुली आंखों में छा गया..
*****✍️गीता
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏, सादर आभार
रात रूपहली रजत छिड़कते,
झिलमिल तारों संग
आ गए चंद्र-किशोर
देख ऐसी छटा अम्बर पर,
इन पंक्तियों में आपने सारा साहित्य उडे़ल दिया है भाव प्रबल हैं एवं शब्द चयन भी सराहनीय है.नवीनता को समेटती हुई आपकी रचना बेहद सराहनीय एवं उम्दा है
इतनी सुन्दर समीक्षा हेतु हार्दिक धन्यवाद प्रज्ञा जी ।
बहुत बहुत आभार
प्रेम में विभोर हो जाए इसी को हम प्रेम कहते हैं।
Thanks.
बहुत सुंदर गीता जी।
यूं ही प्रकृति प्रेमी बनी रहिए
अपनी कविता से आनंद विखेरते रहिए
बहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी
Good
धन्यवाद